तुम्हारे शब्दों की बंदगी हो

जिसमे मेरी आज़ाद आवाज़ हो…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी ज़िन्दगी के दरम्यान

मेरी कल्पना की जुस्तुजू हो…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी हाँ की सोज़ में

मेरी हर ना का जवाब मिले…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी ज़िद की ताक़त में

मेरी सफलता की हार दिखे…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी मुस्कान की रौनक में

मेरी रात का शामिल निश्चय हो…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी पुकार की आज़ादी में

मेरी saaz तृप्त हो…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी सुबह की आशा में

मेरी शाम मद्धम हो…

तब चलेंगे हम.

 

तुम्हारी ज़िन्दगी की एक आस हो

मेरी रूह की वही आहात हो

तब चलेंगे हिम.